ऑस्‍ट्रेलिया से लौटी महिला किसान ने बताया, कैसे खेती से हर दिन होगा मुनाफा

Share it:
Save on your hotel - www.hotelscombined.com

वो अपने फेसबुक पेज पर इंट्रो में लिखती हैं 'Farmer', एक शब्‍द का यह इंट्रो ही उनके बारे में सबकुछ बता देता है। आज के जमाने में जब लोग खेती किसानी का मतलब भूलने लगे हैं उस समय में कोई सोशल मीडिया पर अपना इंट्रो इस तरह देता है तो वो काबिलेतारीफ है। 

ये कहानी है पूर्वी व्‍यास की, जिन्‍होंने 1999 में ऑस्‍ट्रेलिया में पढ़ाई पूरी करने के बाद वहां नौकरी की बजाय भारत में किसानी करने की सोची। 

कैसे शुरू हुआ पूर्वी का सफर

पूर्वी ऑस्ट्रेलिया से 1999 में अपना पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पूर्वी लौटकर भारत आ गईं और उन्होंने कुछ गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर स्थिरता और विकास के लिए काम करना शुरू कर दिया। 2002 में उन्हें प्रसिद्ध पर्यावरणविद् बीना अग्रवाल के साथ एक प्रोजेक्ट पर किसान समुदाय के लिए काम करने का पहला मौका मिला। इस रिसर्च के लिए वह दक्षिणी गुजरात के नेतरंग और देडियापाड़ा जैसे आदिवासी इलाकों में गईं।

इस काम ने पूर्वी के सोचने का पूरा तरीका ही बदल दिया, उन्‍होंने बताया क‍ि यहां रहने से मुझे समझ में आया कि शहर में रहने वाले लोगों की पर्यावरण के प्रति गंभीरता की बातों और उनके रहन-सहन में पर्यावरण को शामिल करने के बीच कितनी गहरी खाई है, और इसमें मैं भी शामिल हूं। इस विरोधाभास ने मुझे बहुत दुखी किया और मैंने एक ऐसे तरीके की खोज करना शुरू कर दिया जिससे मैं उस तरीके को अपना सकूं जिसे गांव के ये लोग अपना रहे हैं।

घर से मिली प्रेरणा

वहां से लौटने के कुछ ही दिनों बाद उन्हें उनकी इस समस्या का समाधान मिल जाएगा। उनकी मां और दादी हमेशा से ही किचन गार्डन को महत्व देती थीं। वह रसोई के कामों में इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटियां और कुछ मसाले घर में ही उगाती थीं। अपने परिवार की इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पूर्वी की मां ने अहमदाबाद से 45 किलोमीटर दूर मतार गांव में अपने 5 एकड़ के खेत में कुछ सब्जियों और फलों की खेती करना शुरू कर दिया। वह हर सप्ताह के अंत में इस खेत में जाकर फसल की देखरेख करती थीं।

पूर्वी कहती हैं कि एक बार जब मैं अपने वीकेंड पर अपने घर आई तो मां ने मुझसे कहा कि मैं उन्हें मतार तक छोड़ आऊं। वह कहती हैं कि यही वह दिन था जिसने मेरी ज़िंदगी बदल दी। अहमदाबाद में जिस खुली और ताज़ी हवा के लिए पूर्वी तरसती थीं, मतार में उन्हें वही हवा अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। वह बाताती हैं कि यही वह चीज़ थी जिसे मैं शहर में खोज रही थी। यहीं से उन्होंने निर्णय लिया कि वो अपनी नौकरी छोड़कर पूरी तरह से किसान बन जाएंगी।

किसानी की दुनिया को नजदीक से देखा

किसानी की दुनिया में शुरुआती दिन पूर्वी के लिए बहुत कठिनाइयों भरे थे। उन्हें खेती-किसानी के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी। यहां तक कि जब वह खेती की बहुत आम सी बातें समझने की कोशिश करती थीं तो छोटे बच्चे तक उन पर हंसते थे लेकिन पूर्वी ने हार नहीं मानी और वह पूरी लगन के साथ खेती की बारीकियों को समझती रहीं। वह कहती हैं समय के साथ मैंने खेती की कई तकनीकों के बारे में सीख लिया। मैंने यह भी जाना कि उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से फसल को कितना नुकसान होता है इसलिए मैंने जैविक खेती के नए तरीकों की खोज करना शुरू किया। साल 2002 में यह इतना ज़्यादा प्रचलित नहीं था।

ऑर्गेनिक खेती की शुरुआत की

उन्हें समझ आ गया कि जैविक खेती करके पर्यावरणीय असंतुलन को काफी हद तक कम किया जा सकता है। उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि यह किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के लिए फायदेमंद है क्योंकि इसमें लागत लगभग नगण्य थी और उत्पादन बहुत स्वस्थ था। उन्होंने अपने ही खेत में एक आत्मनिर्भर मॉडल बनाया, जहां खेती के उत्पादों से जीवन की सभी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता था। इसके बाद पूर्वी ने एक डेयरी फार्म की शुरुआत की, जो जैविक खेती के लिए बहुत ज़रूरी था। एक समय में उनके पास 15 भैंस, छह गाय, छह बकरियां थीं और उनकी डेरी से गांव में सबसे ज़्यादा दूध सप्लाई होता था।

होने लगा मुनाफा

उन्होंने हर उस चीज को पैदा करना शुरू किया जो ज़मीन और उस जगह की भौगोलिक स्थिति उन्हें वहां उगाने देती, जैसे अनाज, फल, आयुर्वेदिक औषधीय पौधों, फलियां, फूलों और सब्जियां। यह एक ऐसा मॉडल था जिससे किसान लगातार पैसा कमा सकते हैं। एक किसान दूध बेचकर रोज़, फूल बेचकर सप्ताह में, सब्ज़ी बेचकर 15 दिन में, फल बेचकर महीने में और अनाज बेचकर साल में पैसे कमा सकते हैं। 

किसानों को जैविक खेती से जोड़ा

पारंपरिक किसान जैविक खेती को तरजीह नहीं देते क्योंकि उनका मानना है कि सिर्फ आर्थिक रूप से मज़बूत किसान ही जैविक खेती कर सकते हैं। इसके अलावा जैविक खेती से वास्तविक लाभ हासिल करने के लिए कम से कम तीन साल का समय लगता है और एक छोटा किसान इतने समय तक सीमित आय में गुजारा नहीं कर सकता। इसके लिए पूर्वी ने दूसरा तरीका निकाला। उन्होंने किसानों से जैविक खेती को करने के लिए कहने के बजाय उपभोक्ताओं को जागरूक करना शुरू किया कि वे जैविक उत्पादों को खरीदें। अपने परिवार की सहायता से पूर्वी ने 50 से 60 परिवारों को इस बात के लिए मना लिया कि वे अब जैविक उत्पादों को पैदा करने वालों से सीधे सामान खरीदें और तीन साल तक उनकी इस काम में मदद करें, जब तक वे सीधे तौर पर जैविक खेती से मुनाफा कमाने के ज़ोन में नहीं आ जाते। जब किसानों को इस बात का भरोसा हो गया कि उनकी फसल की उन्हें नियमित तौर पर कीमत मिलेगी तो वे भी जैविक खेती करने के लिए तैयार हो गए।

युवाओं को किया प्रेरित

खेतों में काम करते हुए पूर्वी हमेशा सोचती थीं कि कैसे शहरी युवाओं को अच्छी और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। उन्होंने पंडित दीन दयाल उपाध्याय पेट्रोलियम विश्वविद्यालय के लिबरल आर्ट के छात्रों को अपने खेत में एक दिन के कार्यक्रम के लिए बुलाया। उन छात्रों को यह कार्यक्रम इतना पसंद आया कि उन्होंने मांग की कि इस तरह की खेतों की यात्रा को उनके पाठ्यक्रम का नियमित हिस्सा बनाया जाए। इसके बाद पूर्वी गांधी नगर और अहमदाबाद के कई कॉलेजों में जाकर गेस्ट फैकल्टी के तौर पर पढाने लगीं। आज, पूर्वी मुनाफे की खेती के मॉडल पर 2,000 से अधिक किसानों के साथ पांच से छः गांवों को बदलने की दिशा में काम कर रही हैं। ये किसान खाद्य मेला और गैर सरकारी संगठनों की सहायता से सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ते हैं और अच्छा मुनाफा कमाते हैं।

Source : IndiaWave
Share it:
loading...

Hindi

Post A Comment:

0 comments: